करें सलाम उसे तो कोई जवाब न दे। इलाही इतना भी उस शख्स को हिजाब न दे। तमाम शहर के चेहरों को पढने निकला हूँ, ऐ मेरे दोस्त मेरे हाथ में किताब न दे। ग़ज़ल के नाम को बदनाम कर दिया उसने कुछ और दे मेरे साकी मुझे शराब न दे। मैं तुझको देख के तेरे भरम को जान सकूँ, कि आदमी हूँ ज़रा सोच ऐसी ताब न दे। वो मिल न पाए अगर मुझको इस ज़माने में, तो ऐसी हूर का दुनिया में कोई ख़्वाब न दे ये मेरे फ़न की तलब है कि दिल की बात कहूँ, वो 'अश्क' दे कि ज़माने को इंक़िलाब न दे। गमे दौराँ पे एक बेहतरीन ग़ज़ल है सर, हर शेर लाजवाब है, बेहतरीन , दिली दाद कुबूल करें।
करें सलाम उसे तो कोई जवाब न दे।
ReplyDeleteइलाही इतना भी उस शख्स को हिजाब न दे।
तमाम शहर के चेहरों को पढने निकला हूँ,
ऐ मेरे दोस्त मेरे हाथ में किताब न दे।
ग़ज़ल के नाम को बदनाम कर दिया उसने
कुछ और दे मेरे साकी मुझे शराब न दे।
मैं तुझको देख के तेरे भरम को जान सकूँ,
कि आदमी हूँ ज़रा सोच ऐसी ताब न दे।
वो मिल न पाए अगर मुझको इस ज़माने में,
तो ऐसी हूर का दुनिया में कोई ख़्वाब न दे
ये मेरे फ़न की तलब है कि दिल की बात कहूँ,
वो 'अश्क' दे कि ज़माने को इंक़िलाब न दे।
गमे दौराँ पे एक बेहतरीन ग़ज़ल है सर, हर शेर लाजवाब है, बेहतरीन , दिली दाद कुबूल करें।