Monday 21 July 2014

KAREN SALAM USE TO,,,


1 comment:

  1. करें सलाम उसे तो कोई जवाब न दे।
    इलाही इतना भी उस शख्स को हिजाब न दे।
    तमाम शहर के चेहरों को पढने निकला हूँ,
    ऐ मेरे दोस्त मेरे हाथ में किताब न दे।
    ग़ज़ल के नाम को बदनाम कर दिया उसने
    कुछ और दे मेरे साकी मुझे शराब न दे।
    मैं तुझको देख के तेरे भरम को जान सकूँ,
    कि आदमी हूँ ज़रा सोच ऐसी ताब न दे।
    वो मिल न पाए अगर मुझको इस ज़माने में,
    तो ऐसी हूर का दुनिया में कोई ख़्वाब न दे
    ये मेरे फ़न की तलब है कि दिल की बात कहूँ,
    वो 'अश्क' दे कि ज़माने को इंक़िलाब न दे।
    गमे दौराँ पे एक बेहतरीन ग़ज़ल है सर, हर शेर लाजवाब है, बेहतरीन , दिली दाद कुबूल करें।

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