Sunday 29 June 2014

hindi ghazal


2 comments:

  1. इस लासानी ग़ज़ल की जितनी भी तारीफ़ की जाए कम है।

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  2. कसक तो दिल में राज-ओ-नियाज़ करने को…… सलीका चाहिए पत्थर गुदाज़ करने को। उड़ान भर के ठहरना पड़ा खलाओं में………फ़लक चला मेरी मंजिल दराज़ करने को। तराशनी है मुझे फिक्र-ओ-जूस्तजू अपनी…… चला हूं अर्ज़े-नजर अपनी बाज़ करने को,। नई उठान है ज़हनों की अपने शेरों में ………ग़ज़ल है मेरी बहुत सरफराज करने को………… वाह सारे शे'र मोती की तरह हैं,। क्या कहने सर। लाजवाब्।

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