Friday 11 July 2014

MAA--HINDI

माँ ज़मीं बनाई है जिसने फ़लक बनाया है, कि मेह्रो-माह की तख़लीक जिसने की यारो, वो छुप के बैठ गया माँ के एक परदे में, सलाम उसपे कि जो माँ है सारे आलम की है जिसके कोख से तख़लीक नस्ल-ए-आदम की। ख़ुदा की ज़ात ने ख़ालिक जिसे बनाया है। उसीने क़ौम के पैग़म्बरों को जन्म दिया, उसी से दीन है ईमान और मज़हब है, उसी के फ़ैज़ से सारा जहाँ मुहज़्ज़ब है। उसी की ज़ुल्फ़ का साया है आसमाँ की तरह, वही है छाँव कड़ी धूप में दरख्तों की, हर एक क़ौम पनपती है उसके साये में, हरेक मुल्क चहकता जवान होता है। उसी की गोद में सारा जहान सोता है। कभी जो मीठे सुरों में वो गुनगुनाती है, सुरूरो कैफ़ बिखरता है सारे आलम में, समंदरों के तलातुम ठहरने लगते हैं, कि थमने लगती हैं मौजें हरेक दरिया की, कि आबशार भी मस्ती में गुनगुनाते हैं, हरेक डाल पे पंछी भी झूम उठते हैं। हवाएँ उसकी सदा में सदा मिलाती हैं, फ़ज़ाएँ लोरियाँ उस माँ के साथ गाती हैं। कि उसके बच्चे को क़ुदरत सुलाने आती है। लबों पे उसके तराने हैं ज़िन्दगानी के, ज़बाँ से प्यार का अमृत बरसता रहता है, नज़र में मेह्रो-मुहब्बत के चाँद तारे हैं, जबीं है जैसे कि अज़्मत का आफ़ताब कोई, जहाँ का हुस्न है पिन्हाँ उसी की सूरत में, छुपा हुआ है खुदा माँ की अस्ल सूरत में। वो माँ की ममता जिसकी न कोई तोल सका कोई भी उसकी तरह प्यार से न बोल सका। हरेक दर्द जो सहती है दुख उठाती है, मिटा के खुद को जो औलाद को बनाती है। किसीके पास ये ईसार ये वफ़ा ही नहीं, जो माँ के पास है औरों में वो अदा ही नहीं। इसीलिए तो जहाँ में अज़ीमतर माँ है, खुदा के बाद इबादत का एक दर माँ है, मेरा यक़ीन है जन्नत है माँ के क़दमों में, खुदा की सारी इनायत है माँ के क़दमों में।

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